मुख्यमंत्री बिहार के: बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी CM की कहानी, अपनी सरकार के खिलाफ आंदोलन कर बने ‘जायंट किलर’

बिहार में गठबंधन सरकारों का लंबा इतिहास रहा है। राज्य में पहली बार गठबंधन की सरकार 1967 में अस्तित्व में आई थी। महामाया प्रसाद इसके मुखिया थे। मुख्यमंत्री बनने के चंद महीने पहले तक कांग्रेस में रहे महामाया प्रसाद अपनी ही सरकार के खिलाफ छात्र आंदोलन में उतर गए थे। बाद में कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़े। उन्हें हराकर ‘जायंट किलर’ का तमगा पाया। ‘मुख्यमंत्री बिहार के’ सीरीज में आज बात बिहार के पांचवें मुख्यमंत्री- महामाया प्रसाद सिन्हा की।

पहले जानें- बिहार में पहली गठबंधन सरकार की नींव कैसे पड़ी?
‘मुख्यमंत्री बिहार के’ की पिछली कड़ी में हमने कृष्ण बल्लभ सहाय के कार्यकाल की बात की थी। उनके कार्यकाल के दौरान कांग्रेस में अंतर्कलह चरम पर था। मसलन- लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक में केबी सहाय पर टिकट बंटवारे में भेदभाव के आरोप लगे। इससे नाराज होकर कांग्रेस के कई नेता पार्टी छोड़कर चले गए। दूसरी तरफ बिहार में 1965 और 1966 में मानसून में कमी भी देखी गई और इस दौरान केंद्र की कांग्रेस की सरकार की तरफ से मदद भी उचित मात्रा में नहीं पहुंची। इससे जनता में जबरदस्त रोष उभरा।

हालांकि, बिहार से कांग्रेस के जाने की सबसे बड़ी वजह बना एक छात्र आंदोलन, इस दौरान गोली चलने की घटना की वजह से कृष्ण बल्लभ सहाय के खिलाफ आक्रोश चरम पर था। इस घटना को लेकर विपक्षी दल भी पहली बार लामबंद दिखे और छात्रों की आवाज बुलंद करते हुए कांग्रेस को खरी-खरी सुनाते रहे। नतीजतन राज्य में एक ऐसा गठबंधन अस्तित्व में आया, जो कि सत्ता पाने के लिए एकजुट हो गया और कांग्रेस की बिहार से पहली बार विदाई का कारण बना।


महामाया प्रसाद कैसे बने मुख्यमंत्री?
बिहार में फरवरी 1967 में विधानसभा चुनाव हुए। 318 सीटों में कांग्रेस को महज 128 सीटें मिलीं। राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व वाली संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) को 68 सीट पर जीत मिली। इसके अलावा जनसंघ को 26, भाकपा को 24 और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (पीएसपी) को 18 सीटें मिली। कांग्रेस में केबी सहाय से नाराज होकर अलग दल बनाने वाले महामाया प्रसाद सिन्हा भी चुनाव में सफल हुए और उनके जन क्रांति दल ने इस चुनाव में 13 सीटें जीतीं। इसके साथ ही बिहार में कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए साथ आया संयुक्त विधायक दल, जिसमें नौ दल शामिल थे। इसमें दक्षिणपंथी पार्टी- जनसंघ और वामपंथी दल- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) भी शामिल थी।

चुनाव में जीत के बाद से ही इस गठबंधन में मुख्यमंत्री के चेहरे पर सहमति नहीं बन पा रही थी। बताया जाता है कि संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) के सबसे बड़ी पार्टी होने की वजह से इसके नेता कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्री बनने की सबसे ज्यादा चर्चा थी, लेकिन गठबंधन के साथी दलों को उनका नाम स्वीकार नहीं था। खासकर रामगढ़ के राजा इस मामले में कर्पूरी ठाकुर के समर्थन में नहीं थे।

इसी गठबंधन में अचानक जन क्रांति दल (जेकेडी) के महामाया प्रसाद सिन्हा का नाम तेजी से सीएम पद के लिए उभरने लगा। वजह यह थी कि महामाया प्रसाद सिन्हा तब छात्रों के बीच जाकर उनके आंदोलनों का नेतृत्व करने के लिए चर्चित थे। इससे जुड़े कुछ किस्से भी महामाया के पक्ष में हवा बनाने में अहम साबित हुए

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जब आईएएस यशवंत सिन्हा से ही भिड़ गए थे मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद
1967 में महामाया प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री के तौर पर संथाल परगना (अब झारखंड में) में हुए कामों का जायजा ले रहे थे। सर्किट हाउस में बैठक के दौरान उन्हें प्रशासन के कामों को लेकर कई शिकायतें मिली थीं। इस दौरान महामाया प्रसाद सिन्हा के साथ मौजूद मंत्री भी प्रशासन से नाराजगी जाहिर कर रहे थे। यह वह समय था, जब संथाल परगना में जिला कलेक्टर थे आईएएस अफसर यशवंत सिन्हा। वही यशवंत सिन्हा जो कि बाद में देश के वित्त मंत्री और विदेश मंत्री रहे।

यशवंत सिन्हा को मुख्यमंत्री और उनके साथी मंत्री की डांट बर्दाश्त नहीं हुई। सिन्हा ने कहा कि इस तरह का बर्ताव उन्हें पसंद नहीं है। इस पर जब महामाया प्रसाद सिन्हा ने आईएएस यशवंत सिन्हा को चेतावनी देते हुए कहा कि उन्हें अपने लिए नई नौकरी ढूंढना शुरू कर देना चाहिए तो यशवंत ने जवाब में कहा था कि मैं किसी दिन मुख्यमंत्री बन सकता हूं, लेकिन आप कभी आईएएस अफसर नहीं बन सकते।

यशवंत सिन्हा ने बाद में सिविल सेवा से इस्तीफा दे दिया था और राजनीति से जुड़ गए। 1995 में वे बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तक बने। केंद्र सरकार में उन्हें कई अहम जिम्मेदारियां मिलीं, लेकिन वे कभी भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। दूसरी तरफ जिन महामाया प्रसाद सिन्हा को यशवंत सिन्हा ने तब यह बात कही थी, वह कभी खुद ही भारतीय सिविल सेवा में चयन होने के बावजूद भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने की वजह से इससे नहीं जुड़े थे।

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