
खनन, अतिक्रमण के चलते 1950 से अबतक 12 पहाड़ियां खत्म होने का एनजीटी में दिया गया है डाटा
पांच दशक में 40 प्रतिशत खत्म हुए वेटलैंड से जैव परिस्थितिकी पर पड़ रहा असर
संदीप वर्मा
फरीदाबाद। राजस्थान की ओर से आती धूल भरी हवाएं हों या पश्चिम की ओर से आती हुई गर्म या सर्द हवाओं से फरीदाबाद समेत एनसीआर का सुरक्षा कवच बनी अरावली की पहाड़ियाें पर अतिक्रमण और अवैध खनन का संकट है। ऐसे में क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारण बन रही हैं। एक रिपोर्ट में वर्ष 1950 से अब तक फरीदाबाद क्षेत्र की करीब 12 पहाड़ियां अवैध खनन और अतिक्रमण की भेंट चढ़ गई है।
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अगस्त 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने अरावली पहाड़ियों के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में सड़क निर्माण रोकने का आदेश दिया था। एक मीडिया रिपोर्ट के बाद आए आदेश में फरीदाबाद-गुरुग्राम रोड के पास बंधवाड़ी में फार्म हाउसों तक सड़क बनाने के लिए अरावली पहाड़ियों को अवैध रूप से समतल करने का खुलासा किया गया था।
इससे पहले क्षेत्र में अवैध खनन के खिलाफ अदालती आदेश जारी किए गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अरावली के आसपास पहले से ही क्षीण हो चुके परिदृश्य में पारिस्थितिकी संतुलन के बिगड़ने से हवा की गुणवत्ता और खराब होगी। इससे हरियाणा के आसपास के इलाकों में पानी का स्तर कम हो जाएगा, जिससे यहां के लाखों निवासियों के जीवन को खतरा होगा। मोंगाबे-इंडिया ने भी पहले इस संवेदनशील वन क्षेत्र में कई पर्यावरणीय मानदंडों के उल्लंघन की रिपोर्ट की थी।
अरावली का बड़ा हिस्सा राजस्थान के साथ-साथ कुछ हिस्सा हरियाणा के फरीदाबाद, गुरुग्राम, मेवात, पलवल, रेवाड़ी, भिवानी और महेंद्रगढ़ में भी पड़ता है। हालांकि खनन, वनों की कटाई और अतिक्रमण ने इस पर कहर बरपाया है। 2002 में उच्चतम न्यायालय के आदेश पर इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। फिर भी, हमारे यहां जगह-जगह छिटपुट मामले सामने आते हैं। अरावली के लिए असली समस्या और खतरा अनियंत्रित निर्माण और अतिक्रमण है, जो पिछले कुछ दशकों में कई गुना बढ़ गया है।
अरावली क्षेत्र में 65 हजार से अधिक छोटे-बड़े अवैध कब्जे
उच्चतम न्यायालय में फरीदाबाद वन विभाग की ओर से दी गई एक रिपोर्ट में फरीदाद वन क्षेत्र में 65 हजार से अधिक छोटे-बड़े अतिक्रमण दर्शाने की रिपोर्ट दी गई थी। उच्चतम न्यायालय ने इन अतिक्रमण को हटाने के लिए जिला प्रशासन और वन विभाग को निर्देशित किया था लेकिन इसपर पूरी तरह से अमल नहीं किया गया। यहां पर बड़े-बड़े होटल, रेस्त्रां, मैरिज हॉल बने हैं। इसके अलावा कई झुग्गी बस्तियां भी इस क्षेत्र में हैं।
अरावली क्षेत्र में संस्था की ओर से की गई रिपोर्ट में यहां पिछले कुछ वर्षों में 45 प्रतिशत तक वेटलैंड सूख चुके हैं। ऐसे में इस क्षेत्र में जैव परिस्थितिकी पर भी फर्क पड़ा है। साथ ही आगे चलकर पेयजल की बड़ी समस्या लोगों के सामने खड़ी होने वाली है। जलवायु परिवर्तन के चलते अधिक गर्मी और सर्दी का दौर चल रहा है। इससे निपटने का सरकार को प्रयास करना चाहिए।
डॉ. टीके रॉय, पर्यावरण विशेषज्ञ