
Nitish Kumar : बिहार चुनाव में अब तीन महीने भी नहीं बचे हैं। एनडीए ’25 में नीतीश’ अभियान के तहत चुनाव की तैयारी रहा। इस बीच उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा क्या हुआ, बिहार में नीतीश कुमार को लेकर चर्चाओं का बाजार गरमा गया। क्या है संभावना?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भारत के उप राष्ट्रपति बनने वाले हैं- यह बात पहली बार बिहार में नहीं उठी है। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के बाद जब जनता दल यूनाईटेड तीसरे नंबर की पार्टी बनी तो सबसे पहले यह बात उठी थी कि अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली में यह कुर्सी संभालेंगे। वह बात आई, गई, हो गई। उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का जिस तरह से इस्तीफा हुआ और अभी जो बिहार चुनाव की गरमी है, उसमें यह बात फिर तेजी से उठ रही है कि नीतीश कुमार भारत के उप राष्ट्रपति बनने वाले हैं। लेकिन! हां, इसमें लेकिन, किंतु, परंतु… सब लगा हुआ है। क्योंकि भी। आइए, समझते हैं कि नीतीश कुमार को लेकर क्या माहौल है और क्या संभव-असंभव है?
बिहार विधानमंडल के अंदर सत्ता-विपक्ष का क्या है रुख
जैसे ही उप राष्ट्रपति धनखड़ के इस्तीफे की खबर आई, बिहार के राजनीतिक दलों के बीच यह चर्चा-ए-आम हो गया। बिहार विधानमंडल का मानसून सत्र नहीं चल रहा होता तो हर दल अलग-अलग जगह खिचड़ी भी पकाते। लेकिन, चूंकि सत्र चल रहा है और उसमें विपक्ष के हंगामे के बीच सत्ता के लगभग सभी विधायक मौजूद हैं तो चर्चा बिहार विधानमंडल के पोर्टिको के आसपास ही मंडरा रही है। विपक्ष से पूछिए, तो जवाब मिलता है कि कोई आश्चर्य नहीं कि नीतीश कुमार को फाइनली किनारे लगाने के लिए यह हो रहा हो। सत्ता पक्ष से पूछिए तो जवाब मिल रहा है कि अभी ऐसी कोई बात नहीं, लेकिन बिहार से किसी को भी उप राष्ट्रपति बनाया जाता है तो खुशी ही होगी।
राजद विधायक अख्तरुल इस्लाम शाहीन ने जहां कहा- “लंबे समय से भाजपा के कई नेता नीतीश कुमार को हटाने के पक्षधर रहे हैं। कभी उप-प्रधानमंत्री तो कभी उप-राष्ट्रपति बनाने की बातें कहते रहे हैं। ऐसे में इस साजिश से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भाजपा ने मौका देखकर उपराष्ट्रपति जैसे राजनीतिक रूप से महत्वहीन पद देकर नीतीश कुमार को हटाने का खेल खेला हो।” वहीं, भाजपा कोटे के मंत्री डॉ. प्रेम कुमार ने इसी सवाल के जवाब में मीडिया से कहा कि “यह फैसला केंद्र सरकार को करना होता है कि कौन उप राष्ट्रपति बनेंगे, लेकिन बिहार से कोई बनें तो खुशी ही होगी।”
उप राष्ट्रपति चुनाव तुरंत जरूरी नहीं, बिहार चुनाव सिर पर
उप राष्ट्रपति का चुनाव तुरंत हो, यह जरूरी नहीं। यह बात संविधान विशेषज्ञ बताते हैं। दूसरी तरफ बिहार में चुनाव है। अधिकतम 20 नवंबर तक नई सरकार का गठन हो जाना है। जुलाई का महीना खत्म होने वाला है। मतलब, अधिकतम 90 दिनों का समय है बिहार चुनाव होने में। ऐसे समय, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिहार से बाहर भेजने का खतरा मोल लेने के लिए भारतीय जनता पार्टी भी तैयार नहीं हो सकती। अगर उसे बिहार चुनाव में अच्छा करना है तो यह उस तरह के फैसले का नहीं है।
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भाजपा और जदयू नेताओं के बीच झंझट से संकेत तो नहीं?
उप राष्ट्रपति के इस्तीफे का समय बहुत अलग है, इसलिए नीतीश कुमार के नाम की चर्चा उछली है। दरअसल, सोमवार को ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के दलों की बैठक से सूत्रों के हवाले से खबर निकली कि जनता दल यूनाईटेड कोटे के मंत्री अशोक चौधरी और भाजपा कोटे के बिहार के डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा के बीच बहुत बड़ा झंझट हो गया। झंझट कितना बड़ा था, यह बताने के लिए दोनों में कोई दल सामने नहीं आए। हां, अशोक चौधरी ने तुरंत बाद एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिहार का सिरमौर, विकास का चेहरा… ऐसे विशेषणों से नवाज दिया। कुछ घंटे बाद आग को ठंडा करने की कोशिश करते हुए विजय कुमार सिन्हा ने एनडीए की बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व पर सकारात्मक पोस्ट सोशल मीडिया के जरिए भी जारी किया। चाणक्या इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं- “गठबंधन में गठबंधन-धर्म को लेकर बहस-कहासुनी होने की बात है। यह असामान्य नहीं है। दोनों तरफ ऐसा होता है और हो ही रहा है। हां, इसके अगले दिन ऐसा हुआ है तो उस बात को बल मिला है। लेकिन, यह भाजपा के लिए खतरनाक हो सकता है। यह पार्टी समझती होगी।”