बारिश में क्यों हर साल डूबता है गुरुग्राम, जबकि नोएडा-ग्रेटर नोएडा में तो ऐसा नहीं होता?

Gurugram vs Noida-Greater Noida : गुरुग्राम की सबसे बड़ी समस्या यह है कि शहर पहले बन गया, योजना बाद में बनी.. जबकि नोएडा जैसे शहरों में पहले मास्टर प्लान बना, फिर निर्माण हुआ. यही कारण है कि बारिश आने पर गुरुग्राम में पानी बह नहीं पाता, जबकि नोएडा में बारिश के पानी के निकलने के लिए पहले से इंतजाम हैं.

नई दिल्‍ली/गुरुग्राम : दिल्ली-एनसीआर में मानसून की जोरदार बारिश के बाद गुरुग्राम फिर जलमग्न हो गया. कारें डूब गईं, जलभराव से ट्रैफ‍िक जाम के चलते लोग ऑफिस देर से पहुंचे. अंडरपास तो तालाब बन गए और सोशल मीडिया पर गुरुग्राम की अव्‍यवस्‍था वाली तस्‍वीरें धड़ाधड़ दिखने लगीं. सोशल मीडिया पर तो इसे पानी में डूबा शहर तक कहा जाने लगा. वहीं, दूसरी ओर नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भी बारिश हुई, लेकिन इस शहर का सिस्टम नहीं बहा. न सड़कें बंद हुईं.. ना ट्रैफिक उस कदर रेंगता नजर आया.. न अंडरपास में नाव चलाने के मीम्स वायरल हुए. तो आखिर ऐसा क्यों है? सवाल यह उठता है कि हर साल की तरह गुरुग्राम बारिश के पानी में क्यों डूब जाता है, जबकि नोएडा-ग्रेटर नोएडा जो अपेक्षाकृत नया और समान भौगोलिक परिस्थितियों वाला शहर है, इस समस्या से काफी हद तक बचा रहता है? इसे प्रशासन, इंफ्रास्ट्रक्चर, शहरी नियोजन और सिविल एजेंसियों के नजरिए से समझने की जरूरत है. आइये इसे थोड़ा समझते हैं.

पहले बात गुरुग्राम में जलभराव की..
चलिए पहले बात गुरुग्राम की कर लेते हैं. गुरुग्राम को कभी भारत का कॉर्पोरेट हब कहा जाता था.. लेकिन आज यह शहर हर बरसात में पानी में डूबने के लिए बदनाम हो चुका है. 10-15 मिनट की तेज बारिश भी इस हाईटेक शहर को ठप कर देती है. यहां भारी जलभराव हो जाता है. जानकारों की मानें तो इसके पीछे एक बड़ी वजह अनियोजित विकास भी है. माना जाता है कि गुरुग्राम का शहरीकरण इतनी तेज से हुआ कि सड़कों और बिल्डिंग्स का निर्माण तो हो गया, लेकिन ड्रेनेज प्लान पीछे छूट गया. कई नई कॉलोनियां और सेक्टर बिना बारिश के पानी की निकासी योजना के ही बन गए.

Gurugram Waterlogging | गुरुग्राम में बारिश का कहर, लग्जरी घरों वाले क्षेत्र में भी जलभराव
जानकार इसे इंस्टीट्यूशनल गड़बड़झाला तक मानते हैं, क्‍योंकि गुरुग्राम में GMDA, नगर निगम, HUDA, DTCP जैसी कई एजेंसियां हैं, लेकिन इनमें तालमेल की भारी कमी दिखती है.. क्‍योंकि जब समस्या आती है तो कोई जिम्मेदारी नहीं लेता. इस समस्‍या का परमानेंट हल क्‍या निकले, इस दिशा में भी कोई कदम नहीं उठाया जाता. हर साल ड्रेनेज की सफाई के दावे किए भी जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही होती है. नतीजा बारिश आते ही नाले उफान पर आ जाते हैं और सड़कें जलाशय बन जाती हैं.

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नोएडा और ग्रेटर नोएडा में क्‍यों नहीं होते ऐसे हालात?
वहीं, अगर बात करें नोएडा और ग्रेटर नोएडा की तो यहां की तस्‍वीर बरसात में कुछ और ही दिखती है. दरअसल, नोएडा और ग्रेटर नोएडा दोनों ही योजनाबद्ध तरीके से बसे हुए शहर हैं. विकसित शहर हैं. यहां की सड़कों, सेक्टरों और ड्रेनेज सिस्टम का निर्माण एक मास्टर प्लान के तहत हुआ है, जो आज भी इन शहरों को टिकाए हुए है

नोएडा में स्टॉर्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम है. इसके तहत हर सेक्टर से बारिश का पानी सीधे ड्रेनेज नेटवर्क में बहता है. वहीं यहां नालों पर निर्माण पर सख्ती है और नियमित इसका निरीक्षण भी किया जाता है . नोएडा अथॉरिटी ड्रोन और CCTV से निगरानी रखती है. मानूसन आने से पहले बड़े पैमाने पर नालों की साफ सफाई की जाती है और उसमें ये गाद को निकालकर उसका निस्‍तारण किया जाता है.


वहीं ग्रीन बेल्ट और खुला क्षेत्र होना भी इस समस्‍या को थोड़ा हल करता है. शहर में पर्याप्त हरित क्षेत्र और खुले प्लॉट हैं, जो वर्षा जल को जमीन में सोखने में भी मदद करते हैं.
जानकार मानते हैं सिंगल प्रशासनिक एजेंसी होना भी इसे फायदा देता है. नोएडा अथॉरिटी और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी जैसी एजेंसियां सीधे राज्य सरकार के अधीन हैं, जिससे जवाबदेही और क्रियान्वयन में पारदर्शिता बनी रहती है.

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