
Angulimal Daku Story: अंगुलिमाल श्रावस्ती का डरावना डाकू था. वह लोगों की उंगलियां काटकर उनकी मला पहनता था. गौतम बुद्ध की शिक्षा से बदलकर वह महान संत बना. उसकी कहानी आज भी बदलाव और सही मार्ग की प्रेरणा देती है.
गोंडा: बहुत समय पहले उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती के आसपास के जंगलों में एक ऐसा डाकू रहता था, जिसके नाम से लोग कांप उठते थे. उसका नाम था अंगुलिमाल. कहते हैं कि उसके डर से कोई उस जंगल में कदम रखने की हिम्मत नहीं करता था. लेकिन वही खूंखार डाकू एक दिन गौतम बुद्ध की शिक्षा से बदल गया और महान संत बन गया. यह कहानी बताती है कि इंसान अगर चाहे तो अपने जीवन को कभी भी बदल सकता है.
लोकल 18 से बातचीत के दौरान वरिष्ठ पत्रकार जानकी शरण द्विवेदी बताते हैं कि डाकू अंगुलिमाल का असली नाम था अहिंसक. वह बहुत बुद्धिमान, आज्ञाकारी और समझदार युवक था. उसके माता-पिता उसे बहुत प्यार करते थे. जब वह बड़ा हुआ तो उसे पढ़ाई के लिए तक्षशिला विश्वविद्यालय भेजा गया, जो उस समय भारत का सबसे बड़ा शिक्षा केंद्र था. वहाँ वह अपने गुरु का प्रिय शिष्य था और हर विषय में सबसे आगे रहता था. तक्षशिला में अहिंसक अपने गुरु का प्रिय शिष्य था. वह हर विषय में निपुण था और गुरु की आज्ञा का पालन करता था. लेकिन कुछ साथियों को उसकी सफलता और लोकप्रियता से जलन होने लगी. उन्होंने गुरु के मन में अहिंसक के खिलाफ गलत बातें भर दीं. धीरे-धीरे गुरु को भी भ्रम हो गया कि अहिंसक भविष्य में उनके लिए खतरा बन सकता है.
एक दिन गुरु ने अहिंसक से कहा कि अगर वह “विद्या की पूर्णता” हासिल करना चाहता है, तो उसे हजार लोगों की उंगलियाँ लाकर माला बनानी होगी. गुरु के इस आदेश को उसने धर्म मानकर स्वीकार कर लिया. इसी से उसका नाम अंगुलिमाल पड़ा यानी “उंगलियों की माला पहनने वाला”. धीरे-धीरे वह जंगलों में लोगों को मारने लगा और उनकी उंगलियाँ काटकर माला में पिरोता गया. उसका खौफ पूरे क्षेत्र में फैल गया. लोग उस जंगल के पास तक जाने से डरने लगे. लेकिन उसकी आत्मा के भीतर कहीं न कहीं एक सच्चा और मासूम अहिंसक अभी भी जीवित था, जो भीतर से पछता रहा था.
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एक दिन जब गौतम बुद्ध उसी रास्ते से गुजरे, तो लोगों ने उन्हें जंगल में जाने से रोका. लेकिन बुद्ध मुस्कुराते हुए बोले, “जिसे अपने मन पर नियंत्रण है, उसे किसी डाकू से डरने की जरूरत नहीं.” बुद्ध सीधे अंगुलिमाल के सामने पहुंचे. डाकू ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन बुद्ध शांत खड़े रहे. बुद्ध के शांत स्वभाव और वचनों ने अंगुलिमाल का दिल छू लिया. उसने उनके चरणों में गिरकर क्षमा मांगी. बुद्ध ने उसे करुणा और प्रेम का मार्ग दिखाया. उस दिन के बाद अहिंसक ने हिंसा का रास्ता छोड़कर धर्म का मार्ग अपना लिया और महान भिक्षु अंगुलिमाल बन गया. आज भी श्रावस्ती और उसके आस-पास के क्षेत्र में अंगुलिमाल की यह कहानी लोगों को यह संदेश देती है कि गलत रास्ते पर चला इंसान भी सही मार्ग पर लौट सकता है, बस उसे एक सच्चे गुरु और सही दिशा की जरूरत होती है.