राहुल गांधी का ‘वोट’ हटाया और ‘बिहार’ जोड़ा… तो तेजस्वी ने बदल दिया एजेंडा और बदला इरादा! क्या कांग्रेस से खींची लकीर?

Bihar Chunav 2025 : तेजस्वी यादव की ‘बिहार अधिकार यात्रा’ ने बिहार की सियासत में नई हलचल पैदा कर दी है. हाल ही में राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ में साथ दिखने वाले तेजस्वी अब अपनी अलग राह पर हैं. जानकारों की नजर में यात्रा का नाम बदलना सिर्फ एक भाषाई फेरबदल नहीं, बल्कि राजनीति की जमीन पर नया समीकरण गढ़ने की कोशिश मानी जा रही है. कांग्रेस से दूरी, महागठबंधन की तकरार और स्वयं के नेतृत्व को स्थापित करने की जद्दोजहद और इन सबके बीच कई सवाल और सियासी संदेश!

पटना. तेजस्वी यादव की ‘बिहार अधिकार यात्रा’ जहानाबाद से शुरू होकर 10 जिलों से गुजरेगी और 20 सितंबर को वैशाली में समाप्त होगी. सीधे तौर पर तो यही कहा जा रहा है कि तेजस्वी यादव की यात्रा का उद्देश्य अपने समर्थकों को एकजुट करना और महागठबंधन के लिए समर्थन जुटाना है. लेकिन, हाल में कांग्रेस और आरजेडी के बीच खटपट की खबरों के बीच इस यात्रा के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. खास बात यह है कि बीते 17 अगस्त से 1 सितंबर तक राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ में वह भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ थे. लेकिन, अब तेजस्वी यादव राजद की अपनी ‘बिहार अधिकार यात्रा’ अब सवाल उठ रहा है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा चलाते-चलाते कांग्रेस से अलग होकर तेजस्वी यादव अपनी अलग यात्रा पर निकल पड़े? इसके साथ यह भी कि अपनी इस यात्रा के नाम से ‘वोट’ या ‘वोटर’ शब्द क्यों हटा दिया?


राहुल गांधी की ‘वोट अधिकार यात्रा’ से दूरी का संकेत?
दरअसल, राहुल गांधी ने हाल ही में बिहार में ‘वोटर अधिकार यात्रा’ चलाई थी और इसे देशभर में चलाने का आह्वान किया है. इस यात्रा में संविधान बचाने, आरक्षण और लोकतंत्र की रक्षा जैसे मुद्दों को केंद्र में रखते हुए नरेंद्र मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की जा रही है. तेजस्वी यादव ने भी बिहार में चले ‘वोटर अधिकार यात्रा’ में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. लेकिन, अब सियासी मोड़ आता दिख रहा है और अब तेजस्वी यादव ‘बिहार अधिकार यात्रा’ पर निकल रहे हैं. तेजस्वी यादव की इस यात्रा को लेकर सामने से तो यही दिखाया जा रहा है कि महागठबंधन में सबकुछ ठीक है, लेकिन बदले तेवर, बदले एजेंडे और बदले इरादे को देखते हुए इसके सियासी मायने तलाशे जा रहे है. सवाल उठाया जा रहा है कि क्या तेजस्वी कांग्रेस से वैचारिक दूरी बना रहे हैं? राजनीति के जानकार इसका जवाब ‘हां’ और ‘ना’, दोनों में देते हैं.


महागठबंधन की अंदरूनी राजनीति का दिख रहा असर
राजनीति के जानकार कहते हैं कि इसका एक सिरा वोटर अधिकार यात्रा में राहुल गांधी को पीएम फेस बताने वाले उनके बयान से जुड़ता है, जिसके बाद राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव को सीएम पद का चेहरा बनाने के सवाल को टाल दिया था. लालू यादव के खुला ऐलान करने के बाद भी कांग्रेस की ओर से अब तक तेजस्वी यादव को महागठबंधन का सीएम फेस घोषित नहीं किया गया है. इसके बाद से ही दोनों ही दलों के भीतर कुछ खटास की झलक मिलने लगी थी. इसके बाद बात आगे तब बढ़ी जब हाल में ही मुजफ्फरपुर में उन्होंने घोषणा की थी कि सभी 243 सीटों पर उनके चेहरे को देखकर मतदाता वोट डालें. जानकारों की दृष्टि में तेजस्वी यादव का इशारों में कहना है कि वह सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं और जनता का समर्थन चाहते हैं. यह इस सियासी तेवर का दूसरा सिरा है जो कांग्रेस और आरजेडी की तल्खी को बयां कर रहा है.

खास बात यह है कि तेजस्वी यादव ने घोषणा की है कि राजद के ‘बिहार अधिकार यात्रा’ में कोई सहयोगी दल शामिल नहीं होगा. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या तेजस्वी यादव कांग्रेस से नाराज हैं? कांग्रेस और आरजेडी के बीच के विवाद की बात की पुष्टि इस बात से भी होती है सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस और आरजेडी में तनातनी की खबरें सामने आ रहीं हैं. बताया जा रहा है कि कांग्रेस करीब 70 सीटों की मांग कर रही है. इसके साथ ही कांग्रेस ने अपनी उपमुख्यमंत्री पद की भी अपनी नई शर्त रख दी है. ऐसे में आरजेडी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस की मांगें अत्यधिक हैं और उन्हें अपनी सीटों की संख्या कम करनी चाहिए.


तेजस्वी यादव की ‘बिहार अधिकार यात्रा’ के मायने समझिये

वहीं, दूसरी ओर बड़ा सवाल यह है कि तेजस्वी यादव की इस यात्रा के मायने क्या हैं. राजनीति के जानकार कहते हैं कि तेजस्वी यादव की यात्रा को महागठबंधन के भीतर अपनी स्थिति मजबूत करने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है. यह यात्रा कांग्रेस के साथ गठबंधन में दरार की ओर भी इशारा जरूर कर रही है, लेकिन अभी इसको लेकर सबकुछ गड़बड़ हो जाने की बात जल्दबाजी होगी. दूसरा सवाल यह कि तेजस्वी ने अपनी यात्रा से ‘वोट’ या ‘वोटर’ शब्द क्यों हटा दिया. जानकार कहते हैं कि दरअसल, ‘वोटर अधिकार’ शब्द वर्तमान में सीधे-सीधे कांग्रेस की विचारधारा से जुड़ गई है. ऐसे में तेजस्वी यादव शायद नहीं चाहते कि उनकी यात्रा को केवल एक दल विशेष के समर्थन अभियान के रूप में देखा जाए.

वोट’ शब्द हटाना तेजस्वी की एक सोची-समझी रणनीति
वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि, बिहार में महागठबंधन में कांग्रेस, राजद और वाम दल के अतिरिक्त मुकेश सहनी की वीआईपी और पशुपति कुमार पारस की लोजपा भी शामिल है. अब जब सीट शेयरिंग और नेतृत्व के सवाल पर अभी तक एकजुट राय नहीं बनी है तो तेजस्वी यादव नहीं चाहते कि उनकी यात्रा को कांग्रेस के एजेंडे से जुड़ा हुआ बताया जाए, क्योंकि राजद अब भी बिहार में कांग्रेस से खुद को मजबूत पाती है. अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि जिस तरह से राहुल गांधी ने ‘वोट चोरी’ तक अपने अभियान को सीमित कर लिया है, वहीं तेजस्वी यादव राजद की बिहार अधिका यात्रा को व्यापक रूप में लाना चाहते हैं. इसलिए उन्होंने ‘वोट’ की जगह ‘बिहार’ शब्द जोड़कर इसे सामाजिक अधिकारों, संविधान, रोजगार और आरक्षण जैसे मुद्दों से जोड़ा है जो बिहार की जनता की बुनियादी चिंताएं हैं.


NDA और BJP के हमलों से बचाव, RJD की अपनी सियासत
अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि अगर तेजस्वी यादव की यात्रा का नाम ‘वोट अधिकार यात्रा’ होता तो भाजपा इसे खुला चुनाव प्रचार कहकर हमला कर सकती थी. वहीं, ‘बिहार अधिकार यात्रा’ को एक जनकल्याण यात्रा के तौर पर पेश किया जा सकता है.इसके साथ ही तेजस्वी यादव अब स्वयं को केवल ‘RJD नेता’ नहीं, बल्कि एक मुख्यमंत्री पद के दावेदार और युवा नेता के रूप में स्थापित करना चाहते हैं. शायद यह भी एक वजह है कि वह अपनी इस यात्रा को अधिक से अधिक बिहार-केंद्रित और जनसरोकारों पर आधारित बनाना चाहते हैं, न कि केवल वोट या चुनाव केंद्रित.

Source of News:- news18.com

स्वयं की स्वतंत्र राजनीतिक पहचान बनाना बड़ा मकसद
अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि, तेजस्वी यादव ने ‘वोट अधिकार’ शब्द हटाकर और यात्रा को ‘बिहार अधिकार यात्रा’ का नाम देकर साफ संकेत दिया है कि वे एक ओर कांग्रेस से रणनीतिक दूरी बनाए रखना चाहते हैं और दूसरी ओर यात्रा को चुनाव प्रचार से अधिक जनसम्पर्क और मुद्दों से जोड़ना चाहते हैं. साथ ही एनडीए के हमलों से भी खुद को सुरक्षित रखना चाहते हैं. जाहिर है तेजस्वी यादव का यह कदम कांग्रेस के साये और राहुल गांधी की छाया से अलग उनकी परिपक्व होती राजनीतिक सोच और स्वतंत्र नेतृत्व वाली छवि निर्माण की ओर बढ़ते कदम का संकेत है.

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