
इससे पहले आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि कानून के तहत उसे मसौदा सूची से गायब लोगों के नामों की अलग सूची बनाने की जरूरत नहीं है। न ही सूची साझा करने या किसी कारण से उनके नाम शामिल न होने के कारणों को प्रकाशित करने की जरूरत है।
शीर्ष अदालत में बिहार में मतदाता सूचियों की एसआईआर के निर्वाचन आयोग के कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने 12 और 13 अगस्त को सुनवाई की तारीख तय की थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि तैयार रहें। हम आपसे मतदाताओं से जुड़े तथ्यों और आंकड़ों के संबंध में कुछ प्रश्न पूछेंगे। इस दौरान चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस तरह के अभ्यास में कुछ खामियां होना स्वाभाविक है।
इससे पहले आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि कानून के तहत उसे मसौदा सूची से गायब लोगों के नामों की अलग सूची बनाने की जरूरत नहीं है। न ही सूची साझा करने या किसी कारण से उनके नाम शामिल न होने के कारणों को प्रकाशित करने की जरूरत है।
‘विपक्ष सिर्फ संसद में और सड़कों पर प्रदर्शन कर रहा’
इससे पहले निर्वाचन आयोग ने सोमवार को कहा कि विपक्ष सिर्फ संसद में और सड़कों पर प्रदर्शन कर रहा है। नियमों के तहत बिहार में एसआईआर के बाद जारी मसौदा मतदाता सूची को लेकर अब तक एक भी आपत्ति नहीं आई है। 11 दिन बाद भी किसी पार्टी की ओर से नाम हटाने या जोड़ने के लिए कोई भी आवेदन नहीं आया।
एसआईआर के गणना के अहम निष्कर्ष
चुनाव आयोग ने कहा कि अब तक सूची में नाम शामिल करने के लिए व्यक्तिगत मतदाताओं से 10,570 फॉर्म प्राप्त हुए हैं। आयोग ने सोमवार को बिहार में 24 जून से 25 जुलाई तक हुए एसआईआर के गणना चरण के प्रमुख निष्कर्ष जारी किए। इनके अनुसार 24 जून तक बिहार में कुल 7.89 करोड़ मतदाता थे, जिनमें से 7.24 करोड़ से अधिक मतदाताओं ने अपने गणना फॉर्म जमा किए हैं। यह कुल मतदाताओं का 91.69 फीसदी है। इस अवधि में 22 लाख मतदाता मृत पाए गए हैं, 36 लाख मतदाता स्थायी रूप से स्थानांतरित हुए या पाए नहीं गए। वहीं, सात लाख मतदाता (0.89 फीसदी) ऐसे थे, जो कई स्थानों पर नामांकित थे।
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कांग्रेस का वोट चोरी का दावा तथ्यात्मक रूप से गलत
निर्वाचन आयोग ने कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी की ओर से विरोध मार्च के दौरान किए गए वोट चोरी के दावों को तथ्यात्मक रूप से गलत बताया। सोशल मीडिया पर जारी फैक्ट चेक में आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) में पारदर्शिता के अपने दावों के समर्थन में दस्तावेज की सूची साझा की। इन साक्ष्यों में राजद, कांग्रेस और भाकपा जैसे दलों के प्रतिनिधियों के वीडियो साक्ष्य शामिल थे। आयोग ने मतदाता सूची के मसौदे के प्रकाशन से पहले, उसके दौरान और बाद में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ अपनी बैठकों का विवरण भी साझा किया।